पैरी नदी के आंचल में हरे-भरे सघन वनों और पहाड़ियों के मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से सुसज्जित नये गरियाबंद जिले का निर्माण 690 गांवों, 306 ग्राम पंचायतों और 158 पटवारी हल्कों को मिलाकर किया गया है। जमीन के ऊपर बहुमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ यह नया जिला अपनी धरती के गर्भ में अलेक्जेण्डर और हीरे जैसी मूल्यवान खनिज सम्पदा को भी संरक्षित किए हुए है। गिरि यानी पर्वतों से घिरे होने (बंद होने) के कारण संभवत: इसका नामकरण गरियाबंद हुआ। पहले यह रायपुर राजस्व जिले में शामिल था। नये गरियाबंद जिले की कुल जनसंख्या पांच लाख 75 हजार 480 है। लगभग चार हजार 220 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्रफल वाले इस जिले में दो हजार 860 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र और एक हजार 360 वर्ग किलोमीटर राजस्व क्षेत्र है। नये गरियाबंद जिले का कुल वन क्षेत्र लगभग 67 प्रतिशत है। इस नये जिले में वन्य प्राणियों सहित जैव विविधता के लिए प्रसिध्द उदन्ती अभ्यारण्य भी है। इस अभ्यारण्य के नाम से वन विभाग का उदन्ती वन मण्डल भी यहां कार्यरत है। यहां खेती का रकबा एक लाख 35 हजार 823 हेक्टेयर है। धान यहां की मुख्य फसल है। वैसे जिले के देवभोग और मैनपुर क्षेत्र में उड़द, मूंग, तिल, अरहर और मक्के के भी खेती होती है। इस अंचल के लोगों की यह मान्यता है कि पुरी के भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए चावल इस जिले के देवभोग क्षेत्र से भेजा जाता था। देवभोग के चावल की लोकप्रियता आज भी बरकरार है।
गरियाबंद जिले का गठन पांच तहसीलों (विकासखण्डों) फिंगेश्वर (राजिम), गरियाबंद, छुरा, मैनपुर और देवभोग को मिलाकर किया गया है। जिले में चार नगर पंचायत गरियाबंद, छुरा, फिंगेश्वर और राजिम शामिल हैं। इस नये जिले की उत्तर-पूर्वी सीमा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले से और उत्तर-पश्चिमी सीमा रायपुर जिला लगी हुई है। इसके दक्षिण में राज्य का धमतरी जिला लगा हुआ है, जबकि पूर्व और दक्षिण में इसकी सरहद ओड़िशा राज्य के नुआपाड़ा और नवरंगपुर जिले से लगती है। नया गरियाबंद जिला मुख्य रूप से आदिवासी बहुल जिला है। विशेष पिछड़ी कमार और भुंजिया जनजाति के लोग भी यहां निवास करते हैं। राज्य शासन द्वारा इनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए कमार विकास अभिकरण और भुंजिया विकास अभिकरण का गठन करने के बाद कई योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। गरियाबंद जिले में कमार जनजाति की जनसंख्या 13 हजार 459 और भुंजिया जनजाति की जनसंख्या मात्र तीन हजार 645 है। छत्तीसगढ़ के महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के पवित्र संगम पर स्थित देश का प्रसिध्द तीर्थ राजिम भी अब रायपुर जिले से नये गरियाबंद जिले में शामिल हो गया है, जो भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर महादेव के प्रसिध्द मंदिरों के लिए भी अपनी खास पहचान रखता है। माघ पूर्णिमा का परंपरागत राजिम मेला राज्य शासन के सहयोग से अब 'राजिम कुंभ' के नाम से भी देश-विदेश में प्रसिध्द हो गया है। इसके अलावा नये गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड (तहसील) में ग्राम कोपरा स्थित कोपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर स्थित कर्णेश्वर महादेव और पंचकोशी महादेव सहित विकासखण्ड छुरा में ग्राम कुटेना में सिरकट्टी आश्रम, जतमई माता का मंदिर ओर घटारानी का पहाड़ी मंदिर तथा जल प्रपात भी इस जिले की सांस्कृतिक और नैसर्गिक पहचान बनाते हैं। पैरी नदी पर निर्मित सिकासार जलाशय सहित उदन्ती अभ्यारण्य, देवधारा (मैनपुर) और घटारानी के जल प्रपात यहां सैलानियों को यहां आकर्षित करते रहे हैं।
सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व की दृष्टि से देखा जाए तो नये गरियाबंद जिले को अनेक प्रसिध्द हस्तियों की जन्म भूमि और कर्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है। इस जिले की राजिम नगरी में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार पंडित सुन्दरलाल शर्मा ने राष्ट्रीय जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। सन्त कवि पवन दीवान ने अपनी ओजस्वी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की पहचान बनायी। वह आज भी साहित्य और आध्यात्म के माध्यम से समाज सेवा में लगे हुए हैं। राजिम प्रसिध्द कहानीकार और उपन्यासकार स्वर्गीय श्री पुरूषोत्तम अनासक्त की भी रचना भूमि रही है। विकास की अपार संभावनाओं से परिपूर्ण गरियाबंद को जिले का दर्जा मिलने पर अब वहां जनता की तरक्की और खुशहाली का नया दौर शुरू होने जा रहा है।
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