जनता के सपनों को पूरा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्यारह वर्ष पहले विकास की अनेक नयी उम्मीदों के साथ नये छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया था। क्षेत्रीय असंतुलन को दूर कर सभी क्षेत्रों को सामाजिक-आर्थिक प्रगति का फायदा समान रूप से पहुंचे और सुशासन के साथ देश के प्रत्येक इलाके का समग्र विकास हो, वर्ष 2000 में अटल जी के नेतृत्व में देश के मानचित्र में छत्तीसगढ़ के साथ झारखण्ड और उत्ताराखण्ड राज्यों के अस्तित्व में आने का भी यही उददेश्य था। अटल जी आजाद भारत के उन गिने-चुने आदर्शवादी नेताओं में हैं, जिन्होंने राष्ट्र की प्रगति के लिए सुशासन के सिध्दांतों को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। सुशासन यानी अच्छा शासन तभी संभव है, जब सरकार जनता के ज्यादा से ज्यादा नजदीक हो, ताकि जनता उसे कभी भी और कहीं भी आसानी से अपने दु:ख-दर्द और अपनी जरूरतों के बारे में बता सके। सुशासन तभी सार्थक होता है, जब उसे जनता तक पहुंचाने के माध्यम यानी प्रशासन का विकेन्द्रीकरण हो। इस दृष्टिकोण से नये छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में विगत आठ वर्षो में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। राज्य के सभी 146 विकासखण्डों को तहसील का दर्जा देना, नगरपालिका परिषदों की संख्या 27 से बढ़ाकर 32 और नगर पंचायतों की संख्या 73 से बढ़ाकर 126 तक पहुंचाना और जिलों की संख्या 16 से बढ़ाकर 18 तक पहुंचाना, छत्तीसगढ़ को सुशासन की राह पर आगे बढ़ाने के लिए उठाए गए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदमों में से हैं। राज्य का निर्माण हुआ तब वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2006 तक प्रदेश में राजस्व जिलों की संख्या केवल 16 थी। इसी तरह तहसीलों की संख्या 98 थी।
राज्य सरकार ने वर्ष 2007 में बस्तर संभाग के नक्सल हिंसा पीड़ित दो बड़े इलाकों- बीजापुर और नारायणपुर को जिले का दर्जा दिया। वर्ष 2008 में उन्होंने सभी 146 विकासखण्डों को तहसील बना दिया। अब नये वर्ष 2012 का आगमन प्रदेश में नौ नये जिलों के निर्माण से हुआ है, जो छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा के लिए निश्चित रूप से एक शुभ संकेत है। राज्य में जिलों की संख्या अब 27 हो गयी है। वर्तमान 146 तहसीलों में से 44 तहसीलें इन नये जिलों में आ गयी है। वास्तव में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा गठित ये नये जिले छत्तीसगढ़ में सुशासन का पर्याय बनेंगे। इसका श्रेय निश्चित रूप से डॉ. रमन सिंह और उसके सरकार को दिया जाना चाहिए। बालोद, गरियाबंद, मुंगेली, बेमेतरा, सुकमा, बलरामपुर, बलौदाबाजार, सूरजपुर और कोण्डागांव जिलों की मांग इन क्षेत्रों के लाखों लोगों का वर्षो पुराना सपना था। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए डॉ. रमन सिंह ने 15 अगस्त 2011 को राजधानी रायपुर में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इन्हें जिले का दर्जा देने की घोषणा की और उनकी सरकार ने सिर्फ चार महीने के भीतर देखते ही देखते इन नये जिलों को आकार देकर एक जनवरी 2012 से प्रदेश के मानचित्र को भी एक नया आकार दे दिया। निश्चित रूप से राज्य के इन सभी नये जिलों की अपनी प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक खूबियां हैं। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है। इस नजरिए से प्रदेश के अन्य जिलों की तरह ये नये जिले भी कृषि प्रधान जिले हैं, जहां खेती के साथ-साथ लघु और कुटीर उद्योगों के विकास की भी अपार संभावनाएं हैं। इनमें से प्रत्येक नये जिले की जनता में अपने नवगठित जिले के नवनिर्माण के लिए नयी आशाओं के साथ नये उत्साह की झलक देखी जा रही है। वर्षो और दशकों बाद उनका सपना साकार जो हो रहा है।
राज्य सरकार ने वर्ष 2007 में बस्तर संभाग के नक्सल हिंसा पीड़ित दो बड़े इलाकों- बीजापुर और नारायणपुर को जिले का दर्जा दिया। वर्ष 2008 में उन्होंने सभी 146 विकासखण्डों को तहसील बना दिया। अब नये वर्ष 2012 का आगमन प्रदेश में नौ नये जिलों के निर्माण से हुआ है, जो छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा के लिए निश्चित रूप से एक शुभ संकेत है। राज्य में जिलों की संख्या अब 27 हो गयी है। वर्तमान 146 तहसीलों में से 44 तहसीलें इन नये जिलों में आ गयी है। वास्तव में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा गठित ये नये जिले छत्तीसगढ़ में सुशासन का पर्याय बनेंगे। इसका श्रेय निश्चित रूप से डॉ. रमन सिंह और उसके सरकार को दिया जाना चाहिए। बालोद, गरियाबंद, मुंगेली, बेमेतरा, सुकमा, बलरामपुर, बलौदाबाजार, सूरजपुर और कोण्डागांव जिलों की मांग इन क्षेत्रों के लाखों लोगों का वर्षो पुराना सपना था। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए डॉ. रमन सिंह ने 15 अगस्त 2011 को राजधानी रायपुर में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इन्हें जिले का दर्जा देने की घोषणा की और उनकी सरकार ने सिर्फ चार महीने के भीतर देखते ही देखते इन नये जिलों को आकार देकर एक जनवरी 2012 से प्रदेश के मानचित्र को भी एक नया आकार दे दिया। निश्चित रूप से राज्य के इन सभी नये जिलों की अपनी प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक खूबियां हैं। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य है। इस नजरिए से प्रदेश के अन्य जिलों की तरह ये नये जिले भी कृषि प्रधान जिले हैं, जहां खेती के साथ-साथ लघु और कुटीर उद्योगों के विकास की भी अपार संभावनाएं हैं। इनमें से प्रत्येक नये जिले की जनता में अपने नवगठित जिले के नवनिर्माण के लिए नयी आशाओं के साथ नये उत्साह की झलक देखी जा रही है। वर्षो और दशकों बाद उनका सपना साकार जो हो रहा है।
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